मित्र
मित्र बनते है सभी, पर मित्र बनना कठिन है |
मित्र बनकर मित्रता का निर्वाह करना कठिन है |
मित्र बनना है अगर तो भूल जाओ स्वार्थ को|
मित्र बनकर रखो याद, बस परमार्थ को |
मित्र यदि गलती करे तो सामने कह दीजिये |
मित्र का जिसमे भला हो, बात वैसी कीजिये |
स्वार्थ छोड़ कपट त्याग,उपदेश देना भूलिए |
मित्र कहकर शत्रुता का भाव रखना भूलिए|
मित्रता अनमोल है , ये सहज, मिलती नही |
टूट जाये, तो उसी रूप में जुडती नही |
जुड़ भी गयी तो , गांठ पड़ने में नहीं कोई संदेह है\
मित्र को पहचान, आँखों से बरसता स्नेह है|
डर है अगर तो आज की,छल भरी इस मित्रता से |
शत्रु अच्छे है, अगर कहकर बने , इस मित्रता से |
शक न करिए मित्र पर मत दूर करिए आंख से|
मित्र दुश्मन बन न जाये, दूर होकर आपसे |
आजकल तो शर्म आती है, मित्रता के नाम पर |
बोल मीठे बोलकर, कब वार कर दे आप पर |
तब न यकीन रहल है, उन पर नं अपने आप पर |
मित्र सच्चा संकटो में हाथ रखना थम के |
प्रतिभा सिंह .........................
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