सोमवार, जुलाई 19, 2010

      सावन आया सावन आया


सावन आया सावन आया |
संग में पानी, कीचड लाया | 
गलियों में उफनाते सीवर |
लोटते उस पर लांखो सूअर |

पानी में डोलते कीढे-मकोड़े |
और हम खाते प्याज-पकौड़े |
नभ में छाया सतरंगी इन्द्रधनुष |
तैरते कीचड में साधारण मनुष्य|

विधाता तेरी यह अधभुद  लीला |
कर देती कपड़ो को गीला |
छत से टपकता पानी तप-तप |
बाल्टी लेकर दौढे हम छ्टपट |
छत से गिरता छूना व् प्लास्टर |
ये है हमरी जिन्दगी का डिजास्टर |
अंत में हम सबने ये गया गाना |

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